कोई भी क्रिया तभी उत्पादक होती है जब उसे कोई लक्ष्य और उद्देश्य मार्गदर्शित करे। भारत की विदेश नीति के साथ भी ऐसा ही है। बिना इन उद्देश्यों के ज्ञान के इन नीतियों की दशा का मूल्यांकन करना सरल नहीं है। भारत के नेताओं ने स्वतंत्रता के समय से ही इन उद्देश्यों का विशेष रूप से उल्लेख किया है।
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राजनीतिक स्वतंत्रता एवं बाह्य सुरक्षा को प्रोत्साहित करना
भारतीय विदेश नीति का मुख्यतः लक्ष्य राजनीतिक स्वतंत्रता एवं बाह्य सुरक्षा को प्रोत्साहित करने के संदर्भ में राष्ट्रीय हित की रक्षा एवं उसे बढ़ावा देना है। भारत जैसा राष्ट्र जिसने औपनिवेशिक शासन से स्वयं को स्वतंत्र किया हो, स्वभावतः ऐसी विदेश नीति का पालन करेगा जिससे उसे अपने स्वतंत्र राष्ट्र के अस्तित्व के साथ समझौता न करना पड़े अथवा किसी अन्य राष्ट्र को यह अवसर न मिले कि वह इसके व्यवहार को निर्देशित कर सके। एक सफल विदेश नीति के सहयोग से भारत किसी भी विदेशी आक्रमण को रोक सकता है या प्रतिरोध कर सकता है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को समस्त विश्व की सुरक्षा के संयुक्त रूप से कार्य करने की इच्छा के विस्तृत एवं विवेकशील पृष्ठपट पर रखा गया है। दूसरे शब्दों में, भारत कभी भी यह नहीं चाहता कि उसकी सुरक्षा से दूसरे राष्ट्र स्वयं को असुरक्षित महसूस करें। भारत ने हमेशा से ही सभी राष्ट्रों के साथ मित्रतापूर्वक संबंध रखने चाहे हैं, विशेष रूप से बड़े देशों और पड़ोसी देशों के साथ संक्षेप में, भारतीय विदेश नीति विश्व शांति को प्रोत्साहित करती है, बीसवीं सदी के शुरू के दो विश्व युद्ध जैसे भयावह युद्धों से बचने के लिए कार्य करती है। भारत उन सभी बड़े राष्ट्रों में शांति और सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहता है, जिनके बीच राजनीतिक, विचारधारा और अन्य मतभेद हैं।
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उपनिवेशवाद के विरुद्ध
भारत जोकि स्वयं औपनिवेशक शासन से पीड़ित रहा है और लंबे अहिंसक संघर्ष के पश्चात आज़ाद हुआ की विदेश नीति उपनिवेशवाद को खत्म करने के लिए वचनबद्ध है। तदनुसार, भारत ने अफ्रीका और एशिया की जनता के राष्ट्रीय संघर्ष का समर्थन किया है। इस लक्ष्य के विस्तार के क्रम में भारत की यह इच्छा रही है कि उसकी विदेश नीति बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों और राष्ट्रों के समान अधिकार की प्राप्ति के लिए वचनबद्ध रहे। इसलिए भारत दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद जैसी घृणित नीति का विरोध करता रहा है। भारत ने प्रयत्न किया है कि भारतीय मूल के नागरिकों, चाहे वे जहाँ भी हों, की समानता के अधिकार की रक्षा कानून के अंतर्गत हो ।
शोषित राष्ट्र और उसकी जनता के आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना
शोषित राष्ट्र और उसकी जनता के आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य रहा है। इसकी प्राप्ति के लिए भारतीय विदेश नीति ने हमेशा औद्योगिक रूप से विकसित राष्ट्रों से हितकारी संबंध विकसित करने चाहे हैं ताकि महत्वपूर्ण मदद की प्राप्ति हो सके। भारतीय नीति का लक्ष्य सिर्फ स्वयं के विकास की जरूरतों को पूरा करना ही नहीं है, बल्कि तृतीय विश्व के नव-स्वाधीन (नवोदित) उन गरीब राष्ट्रों के लिए भी है जिन्होंने हाल ही में स्वाधीनता पाई हो । भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य यह है कि एक न्यायसंगत आर्थिक एवं सामाजिक विश्व व्यवस्था की स्थापना हो जोकि विश्व से बीमारी और वंचन को समाप्त करने में सहायक हो।
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मतभेदों को बातचीत सुलझाना
भारत दूसरे राष्ट्रों के साथ मतभेदों को सुलझाने के लिए बल प्रयोग से दूर रहने के सिद्धांत पर अटल रहा है। वास्तव में भारत, राष्ट्रों के बीच तनाव को कम करने और मतभेदों को कम करने के लिए बातचीत, वार्ता, समझौता एवं कूटनीति जैसे शांतिपूर्ण तरीकों को बढ़ावा देता है। विश्व की विभिन्न समस्याओं से ग्रसित पक्ष के नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास में भारत का सक्रिय सहयोग रहा है। संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य विश्व संगठन और क्षेत्रीय संगठनों की मज़बूती में भारत का दृढ़ विश्वास रहा। है, जोकि अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सहयोग के मुख्य उपकरण हैं। परमाणु एवं अन्य प्रकार के व्यापक क्षति वाले हथियारों के ह्रास (कटौती) और समापन के कार्य में भारत विश्वास रखता है। भारत की विदेश नीति के सिद्धांत जोकि पंचशील (1954) में स्थापित हैं - अनाक्रमण, अहस्तक्षेप (तटस्थता) एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर बल देते हैं।
संक्षेप में, भारत अपनी विदेश नीति के माध्यम से एवं शांतिपूर्ण, परिपक्व, कानूनपालक (विधिपालक) और विश्वसनीय स्वयं को प्रतीयमान होना चाहता है, यद्यपि विश्व समुदाय के अन्य राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण संबंध के द्वारा लाभ उठाने की चेष्टा भी करता है।
Source:-
India_and_the_World_book_mpse-001_ignou