स्वाध्याय आंदोलन (Swadhyaya Movement)



स्वाध्याय आंदोलन (Swadhyaya Movement) का सरोकार मूलतः निर्धनतम लोगों से रहा है। इसने सामूहिक कार्यवाही के उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि सामूहिक संपदा के सिद्धान्त पर सामूहिक कार्यवाही की प्रक्रिया में " व्यक्तिगत संपदा " की धारणा के खिलाफ अभियान चलाया। यह विचार अपने आपमें स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा पर आधारित भूमंडलीकरण से बिल्कुल हटकर है। इस आंदोलन के जनक पांडुरंग शास्त्री, प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान आध्यात्मिक शक्ति में, और सद्भाव तथा बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए इसके उपयोग में विश्वास करते थे। इसी विश्वास के एक अंग के तौर पर, उन्होंने मत्स्य उद्योग सहकारी समितियों, सामूहिक खेतों और बागों जैसी सामूहिक परियोजनाओं का सफल आयोजन किया है। उन्होंने सामूहिक श्रम के द्वारा कुँओं को गहरा करने के काम को भी प्रोत्साहित किया है। यह आंदोलन कई गतिविधियाँ चलाने में सफल रहा है। इसका एक उदाहरण राजहाड का वृक्ष मंदिर श्वेत परियोजना है, जिसके अंतर्गत 711.6 हेक्टेयर भूमि पर 11,000 वृक्ष और 1,617 फलदार पेड़ लगाए गए हैं। 14 एकड़ भूमि की सिंचाई चुअन ( drip irrigation ) पद्धति से होती है।


स्वाध्याय का काम केवल उन्नत कृषि के माध्यम से गरीबों को उनकी आय बढ़ाने में मदद देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों के 1,50,000 गाँवों और कस्बों के 20 लाख लोगों तक और संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड और पश्चिम तथा मध्य - पूर्व में भी फैल चुका है। इस व्यक्तिगत पहल का एक बिल्कुल भिन्न आधार वाली जन पहल में तब्दील हो जाना इस बात का उदाहरण है कि विकास के मॉडल में ऐसे विकल्प उपलब्ध हैं जो रचनात्मक हैं और सतत विकास के लिए सक्षम भी हैं।


Source :- Globalization_and_Environment_book_med-008_ignou
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