विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (ब्रुंटलैण्ड आयोग) World Commission for Environment and Development (Bruntland Commission)


संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1983 में विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (World Commission on Environment and Development; WCED) को स्थापित किया गया जिसकी अध्यक्षता नार्वे की प्रधानमंत्री ग्रो हलेर्म ब्रुंटलैण्ड (Gro Harlem Brundtland) ने की। आयोग सरकारों और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के नियंत्रण से बाहर स्थापित किया गया था। आयोग को "परिवर्तन के लिए विश्व" विकसित करने के लिए कहा गया। ब्रुंटलैण्ड ने विश्व पर्यावरण और विकास आयोग के अधिदेश के भाग के रूप में रिपोर्ट लिखी जिसे अब पर्याप्त लोकप्रियता मिली है और ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट या हमारा उभयनिष्ठ भविष्य (Our Common Future) के नाम से जाना जाता है। बहुत से उपायों में यह रिपोर्ट पर्यावरण ह्रास और संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय वार्ताओं की दिशा बदलने के लिए उत्प्रेरक सिद्ध हुई। सबसे अधिक, महत्वपूर्ण यह है कि रिपोर्ट में सतत विकास की संकल्पना में योगदान किया है जो विकास कार्यों से पर्यावरण ह्रास को दृढ़ता से जोड़ता है।



यद्यपि सततता (Sustainability) के विचार का लम्बा इतिहास है, भौतिक-जैविक-सामाजिक संकल्पना, के रूप में इस पर विचार सबसे पहली बार ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट में किया गया था। इसने न केवल अवधारणा लोक प्रचलित बनाया अपितु इसे विश्वव्यापी नीतिपरक ऊँचाई तक ले गया ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट द्वारा सतत विकास की परिभाषा ऐसे विकास के रूप में की गई है जो भावी पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने की क्षमता से कोई समझौता किए बिना वर्तमान की आवश्यकताएँ पूरी करता है। सतत विकास की इस धारणा ने बहुत से आलोचनात्मक चिन्तन को आकर्षित किया है। फिर भी पर्यावरण पर अन्तर्राष्ट्रीय वार्ताओं में ब्रुंटलैण्ड की रिपोर्ट के सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान में दो पहलू शामिल है। पहला, ब्रुंटलैण्ड के मत ने मानव कल्याण और मानव प्राणी को पर्यावरणी सततता से ऊपर रखा है। दूसरा, उसने पर्यावरण पर वार्ता में प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक समानता की धारणा प्रवृत्त की है। ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट द्वारा निर्धारित कार्यसूची से प्रभावित, जो विकासशील देशों की चिन्ताओं को भी प्रतिध्वनित करता है, अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण वार्ताएं अब पर्यावरण के सुरक्षण और संरक्षण से परे भी ध्यान देती है। पर्यावरण सम्बन्धी मामले अब आर्थिक मामलों, जैसे व्यापार और विकास के संदर्भ में हल किए जा रहे हैं। ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट का प्रभाव दूरगामी है क्योंकि इसने विकास से इसे जोड़कर पर्यावरण पर अन्तर्राष्ट्रीय वार्ताओं की दिशा बदली है।



ब्रुंटलैण्ड रिपोर्ट के कुछ योगदानों में विकसित और विकासशील देशों के लिए विभेदक मानक और ऐहतियाती सिद्धान्त भी हैं। यद्यपि पहली दो अवधारणाएँ स्वतः स्पष्ट हैं, तीसरे की स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। बुंटलैण्ड रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि संभाव्य पर्यावरण सम्बन्धी प्रभाव के बारे में पर्याप्त ज्ञान का अभाव उच्चतर नीतियों को रोकने के लिए और पर्यावरण ह्रास रोकने की कार्यवाही के लिए प्रयुक्त नहीं किए जाएँगे। यह सिद्धान्त जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता अभिसमय और जैव सुरक्षा उपसंधि पर अनुवर्ती संधियों में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।

Source:-
Globalization_and_Environment_book_med-008_ignou







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