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अन्तोगत्वा इस विधेयक के मुख्य चार भाग भिन्न-भिन्न अधिनियमों में पारित हुए : हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, हिन्दू अल्पसंख्यक एवं अभिभावकता अधिनियम और हिन्दू दत्तक एवं भरण-भत्ता अधिनियम । हिन्दू महिलाओं के कानूनी अधिकारों का विस्तार पर्याप्त तो नहीं था परन्तु एक साहसिक कदम जरूर था। इसको इन्हीं कानूनी अधिकारों को अन्य धार्मिक समुदायों से संबंध रखने वाली महिलाओं को दिए जाते समय सरकार द्वारा सामना किए जाने वाले कड़े विरोध से आंका जा सकता है।
1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो को एक अल्पवृत्ति प्रदान की तो मुस्लिम समुदाय के बीच रूढ़िवादियों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप के नाम पर इतनी तीव्र उत्तेजना पैदा की कि राजीव गाँधी सरकार ढीली पड़ गई और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अस्वीकार करने के लिए संसद में एक विधेयक प्रस्तुत कर दिया। कुछ कानूनी अधिकारों का प्रयोग किया गया है जबकि कुछ अभी कागजों पर ही हैं।
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वोट देने के अधिकार को ग्रामीण इलाकों तक में गंभीरता से लिया गया है। बहुधा के 'किसको वोट देना है' विषय पर अपने पतियों से पूछे बगैर ही स्वतंत्र निर्णय लेती हैं। 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों ने महिलाओं के लिए शहरी व स्थानीय दोनों ही स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण की व्यवस्था दी है। इसने हमारे राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में लिंगभेद पूर्वाग्रह को दूर करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परन्तु संसद में सीटें आरक्षित करने के वायदे अभी निभाये नहीं गए हैं। केरल ने महिलाओं के बीच 86 प्रतिशत वयस्क साक्षरता दर प्राप्त कर ली है। केरल के बाद हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु ने नारी साक्षरता में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। 12-14 आयु वर्ग की ग्रामीण लड़कियों की जनसंख्या जो कभी स्कूल ही नहीं गईं, पूरे भारत में 50 प्रतिशत है, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व बिहार में यह दो-तिहाई है और राजस्थान में 82 प्रतिशत तक है।
Source:-
Social_Movements_and_Politics_in India_book_mpse-007_ignou