जैव-विविधता अभिसमय (Convention on Biodiversity, CBD), 1992 पहली विश्व संधि है जिसने वृहद पारितंत्र दृष्टिकोण अंगीकृत किया। सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए जैव-विविधता बहुत आवश्यक है। प्रारंभ में उत्तर जैव-विविधता को मानव जाति की उभयनिष्ठ विरासत के रूप में घोषणा करना चाहता था। परन्तु दक्षिण ने अस्वीकार किया क्योंकि वह अपनी जैव विविधता पर प्रभुसत्ता सम्पन्न प्रभुत्व चाहता था। अभिसमय ने तीन उद्देश्य निर्धारित किए: (1) जैव विविधता का संरक्षण (2) जैव विविधता के घटकों का सतत प्रयोग, और (3) जैव-विविधता प्रयोग करने के लाभ का निष्पक्ष और उचित सहभाजन।
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अभिसमय के अधीन राज्यों को जैव विविधता का प्रयोग करते हुए संरक्षण और सततता के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम विकसित करना, जैव-संसाधनों की सूची तैयार करना, बहिःस्थानी और स्वः स्थानी संरक्षण उपाय करना, संरक्षित क्षेत्रों की प्रणाली स्थापित करना (आदि आवश्यक होंगे), यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि दक्षिण अपनी जैव-विविधता में बहुत समृद्ध है। इसलिए इस अभिसमय में उसका हिस्सा बहुत अधिक है।
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कार्टागेना प्रोटोकॉल जैव-विविधता अभिसमय का संलग्नक है। यह एहतियाती सिद्धान्तों पर आधारित है। जैव प्रौद्योगिकी के लाभ और खतरे पूरी तरह से ज्ञात नहीं किए गए हैं। इसलिए इस प्रोटोकॉल के अनुसार सजीव संशोधित जीवों के स्थानांतरण, संचालन और प्रयोग के मामले में संरक्षण के पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए।
अभिसमय की प्रस्तावना परम्परागत ज्ञान के प्रयोग से उचित सहभाजन के लाभों सहित उभयनिष्ठ चिंता के रूप में जैव-विविधता संरक्षण को स्वीकारता है। अन्य अभिसमयों की भाँति यह भी जैव-विविधता के संरक्षण के लिए अपने प्रयासों में निधीयन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की समस्याओं से जूझ रहा है।
Source:-
Globalization_and_Environment_book_med-008_ignou