अरस्तू और नागरिक समाज की पारंपरिक धारणा, Aristotle and the traditional notion of civil society


अरस्तू (384 - 322 ई.पू.) के लेखन में व्यक्त यूनानी दृष्टिकोण में koinonia शब्द का प्रयोग हुआ है जिसमें समिति समुदाय और समाज की धारणाएँ सम्मिलित हैं, और इनमें से किसी भी शब्द के लिए किसी अलग शब्द का प्रमाण नहीं मिलता। रनसिमैन के अनुसार, अरस्तू का मुख्य सरोकार "समाज और राज्य के बीच नहीं बल्कि निजी या पारिवारिक और राजनीतिक-सह-सामाजिक के बीच" है। बहरहाल, राजनीतिक के दर्शन के विकास के संदर्भ में अरस्तू ने विभेदों की एक श्रृंखला ही प्रस्तुत है जो राजनीतिक समाज और नागरिकों के समाज के अंतर को इंगित करती है।अरस्तू के अनुसार अनेक प्राकृतिक समितियों का निर्माण किसी अच्छे उद्देश्य के लिए होता है और उनमें सर्वोपरि राज्य होता है जोकि उस गृहस्थी से भिन्न होता है जो पुरुष और स्त्री के संयोग से दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनती हैं। गृहस्थी के अंतर्गत, पत्नी के ऊपर पति का और सेवक के ऊपर स्वामी का स्वाभाविक पद होता है। कुछ गृहस्थियाँ या परिवार से मिलकर एक गाँव बनता है और कई गाँव मिलकर नागरिक राज्य बनता है, जिससे आर्थिक और राजनीतिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होती है।


अरस्तू के अनुसार राज्य का निर्माण

राज्य का निर्माण तो जीवन की खातिर होता है लेकिन वह अच्छे जीवन की खातिर अस्तित्व में बना रहता है। इसकी स्थापना अन्य समितियों या संघों (associations) के साध्य के रूप में होती हैं। राज्य का अस्तित्व स्वभाव से होता है क्योंकि मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है क्योंकि केवल मनुष्यों में ही अच्छे और बुरे उचित (न्यायपूर्ण) और अनुचित (अन्यायपूर्ण) की समझ होती है। "जो व्यक्ति राज्य की आवश्यकता महसूस नहीं करता, वह या तो फरिश्ता होता है या जानवर" यही सामान्यता है जिससे एक कुटुंब अथवा गृहस्थी अथवा परिवार का अस्तित्व संभव होता है। बहरहाल, एक कुटुंब और राज्य के बीच इस एकत्व का अर्थ यह नहीं होता कि दोनों समितियाँ एक बराबर हैं। क्योंकि राज्य तो कुटुंब से और हममें से किसी भी व्यक्ति से पहले होता है क्योंकि समग्र को अंश से पहले होना ही चाहिए। कुटुंब तो बुनियादी आवश्यकताओं और जरूरतों को पूरा करता है जबकि राज्य उत्तम जीवन सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। किसी राज्य में जीवन की गुणवत्ता उन लोगों पर निर्भर करती है जो उसमें रहते हैं और उन लक्ष्यों पर भी जिन्हें वे हासिल करना चाहते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में अरस्तू ने संविधान की परिभाषा इस प्रकार की है कि वह शासन का मात्र एक रूप या प्रतिमानों का मात्र एक सकुल नहीं होता बल्कि जीवन का एक तरीका होता है क्योंकि वह राज्य के नैतिक चरित्र को निर्धारित करता है।

अरस्तू कुटुंब को राज्य में समेकित करने के लिए प्लेटो (428-7 347 ई पू.) की आलोचना करता है और यह बताता है कि कुटुब मूल अर्थ में राज्य से भिन्न होता है। कुटुंब में संबंध श्रेष्ठ (पति और स्वामी) और हीन (पत्नी, बच्चे और सेवक) के बीच होते हैं, जबकि राज्य में शासित और शासक के बीच समानता का संबंध होता है इस मत को उदारवाद के प्रवर्तक जॉन लॉक (1632-1704) ने बाद में सत्रहवीं शताब्दी के अंत में राजनीतिक निरंकुशतावाद और पितृसत्तात्मक सत्ता की अपनी आलोचना में दोहराया है। राज्य तो स्वतंत्र पुरुषों के लिए एक स्थान है क्योंकि महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियों के कारण राजनीतिक मामलों के लिए समय नहीं मिलता है। इस तरह, अरस्तू की दृष्टि में polis उन स्वतंत्र और समान पुरुषों का संघ होता है जो मित्रता से और कानूनबद्ध न्याय की सामान्य तलाश से आपस में बधे होते हैं।

Source:-
MGPE13_Civil Society, Political Rigimes and Conflict_ignou






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