बहुत-से लोग भूमंडलीकरण, एक वैश्विक संस्कृति के विस्तार, वित्तीय तथा आर्थिक अंतर्निर्भरता की मजबूती और ज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा प्रतिमानों के प्रसार को समाज और पर्यावरण के लिए सकारात्मक मानते हैं। इस तर्क के अनुसार, भूमंडलीकरण तो लोगों और संस्कृतियों को एक-दूसरे के निकट लाता है। अब हम थोड़े-से समय में ही लंबी-लंबी दूरियों को आसानी से तय कर सकते हैं और भिन्न संस्कृतियों में पहुँच सकते हैं। दुनिया छोटी हो जाने पर हम साथ-साथ काम कर सकते हैं, एक-दूसरे को सिखा सकते हैं। भूमंडलीकरण होने से दूर-दराज की जगहें कम अनजानी, कम पराई हो जाती हैं। इसमें हमें संदर्भ के साझा बिन्दु मिल जाते हैं। इससे अक्षमताएँ कम होती हैं। इससे परस्पर निर्भरता को बढ़ावा मिलता है। यह एक सकारात्मक स्थिति है जिसे हमें प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे राष्ट्र-राज्य द्वारा स्थापित कृत्रिम सीमाएँ मिट जाएँगी और स्थानीय संस्कृतियों को फलने-फूलने का मौका मिलेगा। इससे समाज एक सूत्र में बंध जाएँगे, और इससे लोगों के बीच टकराव की आशंका भी कम हो जाएगी।
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कुछ लोग भूमंडलीकरण के प्रौद्योगिकीय आयामों की जबरदस्त वकालत करते हैं। उनका तर्क है कि आधुनिक प्रौद्योगिकी, विज्ञान, विनियमनों आदि के प्रसार से रहन-सहन का स्तर उठाने में मदद हो रही है, और कालांतर में इससे सेहत और स्वच्छता में सुधार हो रहा है। चिकित्सा-दवाइयों के क्षेत्र में प्रगति होने से हमने पोलियो जैसी कुछ जानलेवा बीमारियों का सफाया कर दिया है और दूसरी बीमारियों पर काबू पा लिया है, अब प्रसव के दौरान कम स्त्रियों की मृत्यु होती है, और शिशु मृत्यु दर भी काफी कम हो गई है। वायु प्रदूषण नियंत्रण की प्रौद्योगिकी का प्रसार होने से दुनिया के कई प्रमुख शहरों की हवा कुछ साल पहले की तुलना में अधिक सांस लेने योग्य अर्थात स्वच्छ हो गई है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में लोगों की औसत आयु में बढ़ोतरी हुई है। यह माना जा रहा है कि भूमंडलीकरण की सहायता से बढ़ाए जा सकने वाले आर्थिक विकास से आर्थिक स्थितियों में सुधार होगा और उससे मनुष्य के कष्ट, प्रदूषण और पर्यावरण के स्तर के गिरावट में कमी आएगी।
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फिर भी हर कोई इस तर्क से सहमत नहीं है। इस विचार की आलोचना करने वाले वित्त और व्यापार के भूमंडलीकरण को उत्तर और दक्षिण के बीच बढ़ते अंतर के लिए जिम्मेदार मानते हैं। भूमंडलीकरण का लाभ सभी समूहों को बराबर नहीं मिल रहा है। बल्कि अमीर लोग और अमीर होते जा रहे हैं, तथा गरीब लोग और भी गरीब। जब दुनिया के दो अरब लोग भीषण गरीबी में रह रहे हैं, तो तर्क यह दिया जाता है कि इस स्थिति में भूमंडलीकरण की बात करना मुश्किल है। जीवन के स्तर में सुधार की बात करना बेमानी है। दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि भूमंडलीकरण के साथ कुछ समस्याएँ जुड़ी हैं। एड्स का फैलना एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान हम अभी तक नहीं कर पाए हैं। धन और खपत बढ़ने से वाहनों हवाई यात्राओं और ऊर्जा की जरूरत यंत्रों पर निर्भरता बढ़ गई है, और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में यह भी एक कारक बन रहा है।
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उपभोक्ता जीवन शैली का भूमंडलीकरण हो जाने से अमीर देशों और संक्रमणकाल से गुजर रहे राज्यों में भी खपत में बढ़ोतरी हो रही है। इससे वैश्विक पर्यावरण पर और भी अधिक दबाव पड़ रहे हैं क्योंकि अब और अधिक लोग अपने घरों को गरम करने, फ्रिज का आनंद उठाने अथवा स्कूटर या कार की सवारी करने में समर्थ हो गए हैं। उपभोक्ता संस्कृतियों से जीवन स्तर में सुधार हो सकता है, किन्तु वैश्विक पर्यावरण को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ रही है?
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भूमंडलीकरण ने कई आशंकाओं को जन्म दिया है और उनमें से कई ठीक भी हैं। ऐसे लोग भी हैं जो यह सोचते हैं कि भूमंडलीकरण एक नए प्रकार के साम्राज्यवाद का ही थोड़ा उन्नत रूप है यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे थोड़े से अमीर देश विकासशील देशों की कीमत पर चला रहे हैं। वे अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में लोकतांत्रिक जवाबदेही की कमी के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं। ऐसी कई सही चिंताएँ हैं जो भूमंडलीकरण के बारे में और श्रम, स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के बारे में जताई जा सकती हैं।