भारत-चीन सीमा युद्ध 1962, India-China border war 1962

चीन के साथ शांति एवं भारत की मित्रता भारतीय विदेश नीति की आधारशिला थी। इस नीति को प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने मित्र और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन की सहायता से निर्मित और निष्पादित किया था। वास्तविकता यह है कि इन दोनों व्यक्तियों ने कभी भी नहीं सोचा था कि उन्हें कम्युनिस्ट देश चीन से कोई खतरा हो सकता है। 


भारत ने "चीन के तिब्बती क्षेत्र" के साथ व्यापार के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करके तिब्बत पर चीन के अधिराजत्व (suzerainty) को स्वीकार करके 1954 में तिब्बत पर चीन के दावे को मान लिया। भारत ने चीन से किसी भी प्रकार की आपसी रियायतों को प्राप्त किए बिना तिब्बत में अपने अधिकारों और विशेषधाकारों को छोड़ दिया। तिब्बत से भारतीय प्रभाव को पूर्णतः समाप्त करके इस दिशा में पहला कदम चीन द्वारा उठाया गया। “तिब्बत चीन के भूभाग का अभिन्न हिस्सा है" चीन की इस घोषणा के साथ चाइनीज़ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत में छापे मानने कर दिए। भारत-चीन मैत्री की नीति को जारी रखते हुए, भारत ने 23 मार्च 1951 में चीन-तिब्बत समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके कारण तिब्बत के भाग्य पर स्थायी रूप से मोहर लग गई। तभी से चीन की सैनिक टुकड़ियाँ भारत, बर्मा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और उससे जुड़े भागों में तैनात है, जबकि भारत ने दक्षिण सीमाओं में शताब्दी से तैनात अपनी सेना, डाक, वाणिज्यिक, टेलिफोन और तार सेवाओं और उपकरणें को वहाँ से हटा लिया। चीन को शांत करने के लिए, नेहरू ने 1954 में चाऊ एन लाई के साथ पंचशील (पाँच सिद्धांत) समझौता किया जो प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता के लिए परस्पर सम्मान, आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप, अनाक्रमण, समानता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित था।

इसे भी पढ़ें 👉 नवजागरण (Renaissance)


यह पंचशील समझौता चीन की विस्तारवादी डिज़ाइनों का भारत द्वारा विरोध न कर पाने की अयोग्यता को छिपाने और अपनी प्रादेशिक महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने के वादे के मद्देनज़र चीन को फुसलाने का एक मिथ्या (दिखावटी) प्रयास था। चीन की इस समझौते के प्रति कोई निष्ठा नहीं थी। इस तथ्य का प्रमाण था - अक्साई चिन क्षेत्र में सेना की टुकड़ियों की स्थापना, सिनककियांग सीमा के साथ भारतीय प्रदेश के भीतर सड़कों का निर्माण और भारत की सीमा चौकियों पर रूक-रूक कर गोलाबारी करना। चीन के नक्शे में पहले से ही समूची उत्तर-पूर्वी सीमा (भारत का एक हिस्सा) को चीनी प्रदेश के हिस्से के रूप में दिखाया जा रहा था।

चीन की सैनिक कार्रवाइयों के बावजूद नेहरू ने 1957 में संसद को बताया कि “भारत का चीन या सोवियत संघ के साथ किसी भी प्रकार का सैनिक द्वंद्व होने का बिल्कुल अंदेशा नहीं है। भारत की भौगोलिक स्थिति इस तरह की है कि उस पर आक्रमण करना आसान नहीं होगा।" दो वर्षों के भीतर 1959 में चीनी सेनाओं ने तिब्बत को हथिया लिया और चीनी आक्रमण से बचने के लिए दलाई लामा को अत्यधिक खतरनाक और अत्यधिक जोखिमपूर्ण यात्रा करनी पड़ी।



तीन वर्षों के बाद, अक्तूबर 1962 में चीन ने भारतीय सेनाओं को परास्त करके सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमा चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया और भारत की सीमा मोर्चेबंदियों को विनष्ट कर दिया। अमेरिका के राजदूत जॉन कैनेथ गालबरैक ने "एम्बेसेडर्स जरनल" में चीन के आक्रमण का विरोध करते हुए भारत की निस्सहायता का, इन शब्दों में वर्णन किया :

"उनकी (भारत) की सेना बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं थी। तिब्बत के हवाई मैदानों से गंगा (Plain) मैदानी शहरों तक पहुँचना आसान है। ऐसा कोई भी अवसर नहीं है कि भारत चीन को ईंट का जवाब पत्थर से दे सके और तिब्बत में कुछ भी ऐसा नहीं है। कोई भी ऐसा तकनीकी अवसर नहीं है जिससे नेहरू द्वारा माँगी गई सुरक्षा को तत्काल मंजूर किया जा सके।"


नेहरू भारत के राष्ट्रीय हित के बचाव में गुटनिरपेक्षता में लचीले हो सकते थे। वे अमेरिका की मदद ले लेते, जो उस समय चीन-विरोधी था और जो अक्तूबर 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद भारत की थोड़ी मदद करने के लिए आगे आया। भारत ने जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के युद्ध में सोवियत संघ की राजनयिक और राजनीतिक सहायता भले ही ली, लेकिन यह मदद भारत को बिना माँगे मिली। यदि भारत ने तिब्बत संकट के दौरान 1954 में अमेरिका से मदद माँगी होती तो अक्तूबर 1962 में चीनी चुनौतियों का सामना करने में अमेरिका की मदद ज्यादा प्रभावशाली और बड़ी हो सकती थी। इससे गुटनिरपेक्षता को एक सही छवि मिलती जिससे यह सिद्ध हो जाता कि गुटनिरपेक्षता ने एक देश को दूसरे देश की तब सहायता लेने दी जब उसकी सुरक्षा खतरे में थी। बजाए इसके की भारत सदैव एक ही महाशक्ति अर्थात् सोवियत संघ की ओर प्रवृत्त होता । निश्चित रूप से इतिहास के काफी प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है। लेकिन इससे भारत गणराज्य के निर्माणात्मक वर्षों में भारतीय विदेशी नीति की सीमाओं का पता चलता है।

Source:- India_and_the_World_book_mpse-001_ignou







एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.