अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना सन् 1944, ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर, संयुक्त राज्य अमेरिका मे हुई थी। मूलतः इसे ग्लोबल इक्विडिटी के संरक्षक के रूप में सोचा गया था ऐसा करने के लिए उसे स्थिर विनिमय दर के अनुरक्षण द्वारा करना था।
परन्तु 1970 के दशक में जब संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति "निक्सन" ने चल पूँजी विनिमय दरों का नया युग प्रारंभ किया तब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अनावश्यक हो गया। इसलिए इसका फोकस बदल गया आज अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के तीन मुख्य उद्देश्य हैं: (1) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा सहयोग को बढ़ावा देना, (2) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार सुकर बनाना, और (3) विनिमय दर स्थिरता बनाए रखना इनकी पूर्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष सदस्य देशों को आर्थिक नीतियों पर सलाह देता है और उन देशों का सशर्त सहायता देता है जो भुगतान संतुलन समस्याएँ अनुभव कर रहे हैं।
सरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों की कई कारणों से बहुत आलोचना हुई है। आलोचकों का तर्क है कि संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम देशों पर कठोर आर्थिक उपाय थोपते हैं जो गरीबी बढ़ाते हैं। खाद्य सुरक्षा को कमज़ोर करते हैं जिसके परिणाम अस्थिर पर्यावरण और सामाजिक विकास होता है। इन परिणामों से उत्पन्न स्थिति खाद्यान्न फसलों से बदलकर नकदी फसलों पर बल देने, खाद्य और कृषि इमदादों का उन्मूलन (सरकारी व्यय कम करने), स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास के क्षेत्रों में सामाजिक कार्यक्रमों की कटौती मुद्रा अवमूल्यन में दिखाई देती है जो आयात लागतों, व्यापार और निवेश के दारीकरण और निजीकरण में दिखाई देती है।
Source:-
Globalization_and_Environment_book_med-008_ignou