किशोरावस्था (Adolescence)


13 से 19 वर्ष की आयु के समय को किशोरावस्था (Adolescence) कहा जाता है। इस आयु के दौरान हमारे शरीर में कई सारे बदलाव होते हैं। हम बचपन से जवानी की ओर बढने लगते है। इसी दौरान कुछ भावनाओं का विकास होता है। जिनके कारण लड़के लड़कियों की तरफ और लड़कियाँ लड़को की तरफ आकर्षित होने लगते है। जिसे आज-कल प्यार का नाम दे दिया जाता है लेकिन प्यार आकर्षण की चरम सीमा पर पहुंचने पर होता है। जो कि बहुत ही कम लोगो को हो पाता है। ज्यादातर नवयुवक इस आकर्षण को ही प्यार समझने लगते है। आज हम इसी विषय को समझेंगे।

इस आकर्षण की शुरुआत नवयुवकों में अकेले होने के एहसास के साथ होता है। उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत महसूस होती है जो उनका ख्याल रखे, उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करे, उनके हर काम मे उनके साथ रहे, उनके साथ वो अपनी सभी बाते साझा कर सकें और उनका हमेशा मनोरंजन करता रहे, आदि।

हालांकि इनमें से ज्यादातर इच्छाएँ एक दोस्त या परिवार के सदस्य भी पूरा कर सकते है लेकीन इस उम्र मे हमे विपरीत लिंग वाले व्यक्ति की ही कमी खलती है। इसे बढावा देने मे आज-कल की रोमांटिक फिल्मों का भी एक बहुत बड़ा रोल है।


मैं ये नहीं कहता की यह भावना गलत या बुरी है। दरअसल ये भावना हमे एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में ले जाती है जहाँ हमे दुनिया की सभी खुशियाँ मिलती है, पर अफसोस यह बस एक काल्पनिक दुनिया ही होती है और कुछ भी नही।

इस काल्पनिक दुनिया की शुरुआत विपरीत लिंग के आकर्षण से शुरू होती है और बातों से एक बंधन बनने लगता है जिसके बाद एक साथ रहने, एक-दूसरे के प्रति समर्थन और विश्वास का भाव पैदा होने लगता है। ऐसा एहसास होने लगता है जैसे वो एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते...

मगर ये सब बस तब – तक ही चलता है जब - तक उनके बीच संभोग (Sex) न हो जाएँ। संभोग इस काल्पनिक दुनिया की अंतिम सीमा है। इसके बाद धीरे-धीरे ये आकर्षण खतम होने लगता है और दोनो एक - दूसरे से परेशान होने लगते है। उनकी सारी ख्वाहिसें और इच्छाएँ पूरी हो जाती है और फिर उन्हें असली दुनिया और उस काल्पनिक दुनिया में अंतर पता चलने लगता है। लेकिन तब - तक उनकी जिंदगी के कई महत्वपूर्ण साल गुजर चुके होते हैं और वो बहुत कुछ खो चुके होते हैं। 


इस पूरी प्रक्रिया मे एक कमाल की बात यह है कि हमे शुरू से पता होता है की इसका अंत कैसा होगा, फिर भी हम इस काल्पनिक दुनिया में जीना पसंद करते हैं। सिर्फ थोडी सी या छोटी - छोटी खुशियों के लिए। हम इन छोटी-छोटी खुशियो में ही अपनी जिंदगी को जीना पसंद करते है और ये भूल जाते हैं कि हर खुशी के बाद दुख भी आता है और ये वाला दुख तो जिंदगी भर हमारी परछाई की तरह हमारे साथ रहता है।

मुझे पता है कि ये बातें सभी जानते है, लेकिन मैं ये भी जानता हूँ कि ये बातें तब तक समझ नहीं आती जब-तक  एक बड़ी ठोकर न लग जाएं और थे ठोकर उन्हें कब लगेगी ये कोई नहीं जानता और न ही ये जानते हैं कि उस ठोकर से संभलने का समय मिलेगा भी या नहीं।


ये किशोरावस्था की उम्र बहुत नाजुक और महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस उम्र मे लिए गए सभी फैसले हमारी जिंदगी के आने वाले 40-50 साल तय करते हैं। हमारे एक गलत फैसले से हमारी बाकी की सारी जिंदगी खराब हो सकती है। लेकिन अगर हम "इस उम्र मे एक सही रास्ते (Our Goals) पर, सही इरादे और दृढ इच्छा शक्ति के साथ कोई काम करें तो हम भी इस दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकते हैं।" जिसमें केवल 3-4 सालो का ही समय लगता है। उसके बाद अगर हम चाहे तो हम इस काल्पनिक दुनिया कि जिंदगी को भी जी सकते हैं, क्योंकि इस काल्पनिक दुनिया का रास्ता हमेशा खुला रहता है।

अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम पहले इस काल्पनिक दुनिया में जा कर अपने आने वाले 40-50 सालो को बर्बाद करें या पहले अपने आने वाले 40-50 सालो को संवार कर उस काल्पनिक दुनिया में जाएँ। जब हमारे पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता।

यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।


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